मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में ओबीसी, एससी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद अब यूपी पर नजर
लखनऊ। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्रिसमस की पूर्व संध्या पर बनारस में एक रैली कर लोकसभा चुनावों में सम्मानित परिणाम के लिए जनता की नब्ज टटोलेंगे। नीतीश का हिन्दी पट्टी से बढ़े प्रभाव से बीजेपी भी मजबूरी में ही सही कमंडल के साथ मंडल को भी अपने साथ लेकर चलने का प्रयास कर रही है।मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में ओबीसी, एससी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद अब यूपी में भी यदि विस्तार होता है तो पंकज चौधरी, स्वतंत्र देव सिंह व केशव प्रसाद का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए लोक सभा चुनाव से पहले फाइनल हो सकता है।मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे एवं छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को जिस तरह से बीजेपी ने किनारे करके ओबीसी एससी कार्ड खेला तो अब यूपी में भी ऐसा करना संभव लगता है। नीतीश कुमार की जन सभा से एक नया सवाल पैदा हुआ है कि नीतीश खुद प्रधानमंत्री बनने के लिए वाराणसी में जनसभा करेंगे या पंकज चौधरी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम करेंगे। राजनीतिज्ञ विश्लेषकों का मानना है कि पिछले दो चुनावों में नीतीश कुमार ने अनुप्रिया पटेल को सपोर्ट कर आगे बढ़ाया।
2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा अपना दल से गठबंधन करने मे आगे पीछे कर रही थी। एक तरफ जहां गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अनुप्रिया पटेल की पार्टी से गठबंधन करना चाह रहे थे लेकिन आरएसएस का एक बड़ा धड़ा यह कह कर विरोध कर रहा था कि हमें दूसरी मायावती नहीं पैदा करना है। लेकिन नीतीश कुमार ने यूपी में संगठन को इतनी मजबूती से बढ़ाना शुरू किया कि दूसरी मायावती के खौफ को दरकिनार कर भाजपा को गठबंधन करना पड़ा। भाजपा से गठबंधन होते ही नीतीश कुमार ने यूपी में लोक सभा चुनाव लड़ने से इनकार कर अनुप्रिया पटेल के लिए राजनीति का दरवाजा खोल दिया। अनुप्रिया पटेल सांसद बन गयीं। लेकिन फिर दूसरी मायावती के खौफ ने उन्हें मंत्री नहीं बनने दिया।यूपी में 2017 के विधान सभा चुनाव आने पर नीतीश कुमार ने एक बार फिर पूरी तैयारी के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। नीतीश की घोषणा के बाद राजनीति इतनी गरम हुई कि कई बार के सांसद संतोष गंगवार को राज्यमंत्री बनाने से हिचक रही बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल को केन्द्र में राज्यमंत्री बना दिया।
अनुप्रिया पटेल के केन्द्र में राज्यमंत्री बनते ही नीतीश कुमार ने यूपी से चुनाव लड़ने की पार्टी की योजना को ही वापस ले लिया। इससे यूपी जेडीयू में भी काफी विरोध हुआ और निरंजन भईया व आरपी चौधरी दो – प्रदेश अध्यक्षों को भी जाना पड़ा। – आगामी 2024 लोक सभा चुनावों में अनुप्रिया पटेल के बारे में बस अब और नहीं का ब्रेक फिर दूसरी मायावती के खौफ ने लगा दिया। अनुप्रिया पटेल को – अब दूसरी मायावती बनने के खौफ को हकीकत में बदलने में थोड़ा और वक्त लगेगा। बीजेपी अब अपने सिर पर – बरगद उगाने के बजाय अपनी अन्य – टहनियों को आगे बढ़ाकर उनसे फल खाना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गोरखपुर मठ के बजाय पंकज चौधरी के घर जाने की घटना के विस्तार में उन्हें मुख्यमंत्री बनने की खबरों ने जोर पकड़ लिया।
उन खबरों का अभी कोई परिणाम नहीं निकला लेकिन प्रधानमंत्री के साथ आई केशव प्रसाद मौर्या की तस्वीर ने हवा का रुख उनकी ओर कर दिया।स्वतंत्र देव का नाम भी पंकज चौधरी के साथ बीजेपी का कमण्डल वाला स्वरूप का मंडल वाला चेहरा माना जा रहा है। दरअसल, अकेले नीतीश कुमार के दबाव में बीजेपी इसलिए आ जाती है कि वह जिस कुर्मी जाति से आते हैं देश में उसकी आबादी अकेले लगभग 20 प्रतिशत है। स्थानीय राजनीति में पूरा स्थान न मिलने से वह अधिक जनमत के साथ बीजेपी में हैं। यह स्थिति पूरे देश में कम ज्यादा है। गुजरात में तो पटेल की नाराजगी से मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा तेलंगाना के केसीआर छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
आज एक तरह से कह सकते हैं कि जितने में पूरी मुस्लिम आबादी या अल्पसंख्यक धर्म उतनी आबादी केवल कुर्मियों की है। यूपी में कुर्मी, यादव, मौर्य की वही स्थिति है जो गुजरात में लेउवा, कड़वा और अंजना कुर्मियों की है। वह यूपी से स्वामी नारायण जैसे लोगों को ले जाकर भगवान बना देते हैं और आपस में रिश्ता करने पर एक दूसरे को छोटा बताते हैं। यही हाल यूपी में है यूपी का मौर्या कुर्मियों के साथ रहना चाहता है लेकिन कुर्मी उसे कम सम्मान देता है और कुर्मी यादवों के साथ रहना चाहता है लेकिन यादव उसे कम सम्मान देता है। सभी एक-दूसरे से अपने बेटे-बेटियों की शादियां करने लगे तो देश के हालात और सुधर जायें।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के सामने इसलिए खड़े हो जाते हैं कि बीजेपी का सॉलिड वोटर जनरल क्लास का 15 प्रतिशत ही है। देश में अकेले कुर्मियों की आबादी ही 20 प्रतिशत के आसपास है। दोनों में अन्तर यह है कि बीजेपी का 15 प्रतिशत वोटर उसके साथ है नीतीश कुमार का वोटर आपस में बंटा हुआ है। अभी बीजेपी के प्लस वोटर को जिसे नीतीश कुमार अपना मानते हैं। इसी वोट के खिसकने के डर से नीतीश कुमार के कदम को रोकने के लिए बीजेपी को कभी अनुप्रिया पटेल, कभी पंकज चौधरी कभी स्वतन्त्र देव सिंह को आगे करना पड़ता है।
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