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क्या में समाजवादी पार्टी सोशल मीडिया तक सिमट गई है?

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एक केवल भगवान कहने से ‘पीडीए’ का भला नहीं होगा, पीडीए को विश्वास में लेना होगा

बलिराम सिंह

तीन दिन पहले बीएचयू आईआईटी में दुष्कर्म की पीड़ित छात्रा के आरोपियों पर बुलडोजर चलाने की मांग को लेकर कांग्रेस ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों की आवाज को सुनकर मेरे एक वकील मित्र ने कहा कि कल तक प्रदर्शन एवं आंदोलन के लिए समाजवादी पार्टी जानी जाती थी, लेकिन आज समाजवादी पार्टी कहीं धरना-प्रदर्शन अपना आंदोलन करते नजर नहीं आती है। सपा केवल सोशल मीडिया तक सौमट कर रह गई है। साथ में खड़े एक सेवानिवृत इंजीनियर ने कहा कि धरतीपुत्र के नाम से प्रसिद्ध मुलायम सिंह के नेतृत्व में कभी समाजष्ादी पाटों नौजवानों, किसानों के मुद्दों को लेकर अक्सर सड़‌कों पर उतरकर प्रदर्शन करती नजर आती थी। आंदोलन करती थी, जेलभरो आंदोलन करती थी, लेकिन आज अखिलेश यादव के दौर में समाजवादी पार्टी कंवल सोशल मीडिया तक सीमट कर रह गई है। किसी भी घटना के दौरान सपा की तरफ से केवल एक प्रतिनिधिमंडल को घटना स्थल पर भेजकर खानापूर्ति कर दी जाती है।

हालाकि मेरे बकौल मित्र के इतर समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ने से पहले हो सुभासपा प्रमुख पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने आगाह करते हुए कहा था कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव को ‘एसी’ कमरे से बाहर निकल कर जमीन पर उतरना चाहिए। ओमप्रकाश राजभर के बयान पर सपा नेताओं ने ऐतराज जताया था, लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी कार्यशैली में थोड़ा सुधार जरूर किया। उन्होंने प्रदेश के विभित्र हिस्सों में दौरा तेज कर दी। आज अखिलेश यादव एक दिन सहारनपुर में दिखते हैं तो दूसरे दिन बलिया में नजर आते हैं। हालांकि जनता के मुद्दों को लेकर सपा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन एवं आंदोलन को लेकर बात करें तो अभी भी सपा कहीं नजर नहीं आती है। चाहे बीएचयू आईआईटी में दुष्कर्म पीड़ित छात्रा की बात हो अथवा 69 हजार शिक्षक भर्ती मामले में कड़कती ठंड में धरने पर बैठे पीड़ित अभ्यर्थियों की बात हो अथवा किसानों का मुद्दा हो। कहीं भी पाटी मुलायम सिंह यादव के दौर की समाजवादी पार्टी की तरह नजर नहीं आती है।खास बात यह है कि दलित-पिछड़ों व अल्पसंख्यकों को साधने के लिए अखिलेश यादव ने ‘पौडीए’ का राग अलापना शुरू किया है। उन्होंने दो दिन पहले पीडीए को ही अपना ‘भगवान’ बताया है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या केवल भगवान कहने से पीटीए का भला हो जाए‌गा अथवा पीडीए की बुनियादी जरूरतों को लेकर पुरजोर ढंग से सड़क से लेकर विधानसभा के अंदर उठाने से उनका भला होगा।

69 हजार शिक्षक भर्ती में हुई धांधली मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की टिप्पणी के बावजूद अभी तक पीड़ित अभ्यर्थियों को न्याय नहीं मिला। कड़कती ठंड में पीड़ित अभ्यर्थी इको गार्डन में घरना देने को मजबूर हैं। मजे की बात यह है कि इस मामले में विपक्ष में रहने के बावजूद समाजवादी पार्टी इसे मजबूती से नहीं रख पा रही है, जबकि सत्ता में रहने के बावजूद अपना दल एस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल इस मामले को लेकर ज्यादा मुखर दिख रही है। अनुप्रिया पटेल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सामने निरंतर इस मामले को रख रही है। इसके अलावा कई ऐसी भर्तियां आई है, जहां पर पिछड़ों का कट- ऑफ सामान्य से ज्यादा रहा है, कई भर्तियों में पिछड़ों की सीटें बहुत कम आ रही हैं, लेकिन इन मुद्दों को भुनाने में समाजवादी पार्टी पिछड़ जा रही है।

योगी 2.0 सरकार के गठन को दो साल पूरे होने में महज दो महीने शेष रह गए है, लेकिन अभी तक उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का चेयरमैन नियुक्त नहीं हुआ। चेयरमैन पद रिक्त होने से पिछड़ों की समस्याओं की सुनवाई नहीं हो रही है। फाइलें घुल खा रही हैं। पीड़ित अभ्यर्थियों को अपनी शिकायतें लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का दरवाजा खटखटाने को मजबूर होना पड़ रहा है। लेकिन इन मुद्दों को समाजवादी पार्टी द्वारा उठाते हुए नहीं देखा गया। अब सवाल उठता है कि क्या समाजवादी पार्टी का पीडीए राग केवल चुनावी मुद्दा है अथवा इस मुद्दे को लेकर सपा ठोस रणनीति के तहत काम करेगी। यह आने वाला समय बताएगा।

(लेखक पत्रकार व सामाजिक चिंतक है)

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