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राजकाज में “न्याय के सिद्धांत” पर बहुमत से प्रभावित न होने का जोखिम उठाते नीतीश

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दुर्गेश कुमार

जीसस क्राइस्ट ने लोगों को सदैव अच्छे कर्म करने, बुरे कर्म त्यागने की बात की. जीसस की बात पाखंडियों और कट्टरपंथियों को अखरने लगी. सबने मिल कर उनके विरुद्ध रोम के शासक को भड़काना शुरू किया. अंततः एक दिन यहूदी शासकों ने जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ा दिया.

यूनान आस्तिकों का देश, देवी-देवताओं को पूजने वाला देश… जहाँ के महान दार्शनिक सुकरात एथेंस में लोगों के रोजमर्रा के विचारों और लोकप्रिय विचारों पर सवाल उठाने के लिए प्रतिबद्ध थे. उन पर तीन आरोप लगाए गए.. पहला कि वे यूनान के मान्य देवता को नहीं मानते है.. दूसरा कि वे काल्पनिक जीवन वाले देवता की स्थापना की है और तीसरा कि वे युवाओं को पथभ्रष्ट्र बना रहे हैं. जबकि सुकरात ने यूनान के लोगों को तार्किकता के आधार पर सवाल करने का तरीका सिखाना शुरू किया था. उनके दुश्मनों ने उन पर ऐसे छद्म आरोप लगा कर मुकदमा चलाया.

सुकरात को जहर पीने का आदेश सुनाया गया. जेल से उन्हें छुड़ाने के लिए उनके अनुयायी तैयारी कर चुके थे, उनसे कहा भी आप निकल चलिए. किन्तु सुकरात ने कहा कि राज्य का आदेश गलत हो सकता है, किन्तु राज्य संस्था गलत नहीं हो सकती है. राज्य की अवज्ञा करना यदि राज्य के नजर में अपराध है तो उसकी सजा स्वीकार करने दीजिए. सुकरात ने सजा स्वीकार किया. जहर पीने के दिन जहर बनाने वाला जहर धीरे-धीरे पीस रहा था, तब सुकरात आराम से दोस्तों से बात कर रहे थे. उन्हें 5 बजे जहर दिया जाना था. सुकरात ने 2 मिनट पहले जहर बनाने वाले से कहा, ‘’देर मत करो’’.

तब जहर बनाने वाले ने कहा कि , ‘‘मैं चाहता हूं कि आप जैसे महान व्यक्ति कुछ और समय जी सकें, इसलिए जान-बूझकर देर कर रहा हूं।’’ सुकरात ने कहा कि ‘’और थोड़ा अधिक देर तक जी गया तो कौन सा बड़ा बात होगा’’. 70 वर्ष की उम्र वाले सुकरात ने जहर पी लिया.. लेकिन तार्किकता और न्याय के लिए अपनी जान दे दी.. राज्य की अवज्ञा नहीं किया.

गैलेलियो ने जब बार कहा कि पृथ्वील गोल है और वह सूर्य के की परिक्रमा करती है… न कि सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है.. चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और पृथ्वीि की परिक्रमा करता है तो रोमन चर्च और पदरियों को ने जम कर गैलेलियो का उत्पीड़न किया. पादरियों ने कहा कि बाइबिल के अनुसार पृथ्वीो ही अंतरिक्ष का केंद्र है और सूर्य पृथ्वीर के चारों ओर चक्कवर लगाता है. इसलिए यही सत्य है. गैलीलियो को चर्च में बुलाया गया. उस पर मुकदमा चला कर उसे ईश निंदा का दोषी करार दिया गया. गैलीलियो की एक भी तार्किकता नहीं मानी गयी. चर्च के पादरियों ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

महात्मा फुले सावित्री बाई फुले जब महाराष्ट्र में पढ़ा रहे थे, तो उन पर गोबर फेके गए. उन्हें जान से मारने के लिए सुपारी दी गयी. लेकिन होनी को मंजूर था उनका बच जाना… फुले सामाजिक क्रांति करने में सफल रहे. जब अम्बेडकर समानता की बात कर रहे थे, शाहूजी शाहूजी समतामूलक समाज की स्थापना के लिए विद्यालयों की स्थापना कर रहे थे, तब के ज़माने में कट्टरवादियों के नेता तिलक ने पिछड़ी जातियों के लोगों को कहा कि तेली.. तमोली, कुनभट असेम्बली में जाकर क्या करेंगे.. वहां क्या तेल निकालना है..हल चलाना है? किन्तु इस बाल गंगाधर तिलक को पाखंडियों और कट्टरपंथियों ने अपने माथे का तिलक बना लिया.

जीसस क्राइस्ट, सुकरात, गैलेलियो से लेकर फुले, शाहूजी, अम्बेडकर तक के अपने समय में पाखंडियों, अंधविश्वासियों के नेतृत्व में बहुमत इनके खिलाफ था, किन्तु इनके साथ इनकी तार्किकता थी, ज्ञान था. एक भीड़ थी जो नई धारा के उदय के खिलाफ थी.. नई धारा के उदय को कृतसंकल्पित तमाम महान व्यक्तियों को तात्कालिक रूप से पराभव का सामना करना पड़ा. किन्तु बाद में क्या हुआ.. यह कहने की जरुरत नहीं है. बिहार में महिला सशक्तिकरण के प्रवर्तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंच पर अभिवादन करने वाली महिला उद्घोषक से क्या कहा.. “आपका भी अभिनंदन है’’.

यह देख कर मणिपुर की बेटियों के बलात्कारियों के समर्थक, पहलवान बेटियों के उत्पीड़क दल के अफवाह नीतीश कुमार की चरित्र हत्या करने के लिए वैसे ही टूट पड़े जैसे कभी उत्पीड़क पाखंडी और कट्टरपंथी जीसस क्राइस्ट, सुकरात, गैलेलियो से लेकर फुले, शाहूजी, अम्बेडकर के खिलाफ टूट पड़े थे.. और बहुमत वैसे ही पाखंडियों के साथ था… जैसे सुकरात को जहर देने वाले.. जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाने वाले के साथ था.

नीतीश न सुकरात है न जीसस… वे एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं. उनके पास वैसी ही सत्ता है, जैसी योगी आदित्यनाथ और ममता बनर्जी के पास है. कुछ उससे थोड़ी अधिक ताकतवर सत्ता मोदी के पास है. उन्हें फांसी भी नहीं दी जा रही है, लेकिन उनके चरित्र की हत्या हर रोज की जा रही है. यदि नीतीश सुकरात के “राज्य की अवज्ञा नहीं करने” के सिद्धांत न मानते, शासन के इकबाल का इस्तेमाल निजी उद्देश्य के लिए नहीं करने को कृतसंकल्पित नहीं होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती कि ऐसा गुनाह करे. लेकिन अब कमल का फूल कुम्हलाने लगा है, इसलिए तालाब का पानी बदलना होगा.

(लेखक सामाजिक चिंतक हैं)

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